हिमा दास की संघर्षगाथा – जब जूते नहीं थे, तब कीचड़ में किया अभ्यास और जीता विश्व पदक
मेटा विवरण (Meta Description): भारत की “ढिंग एक्सप्रेस” हिमा दास की कहानी – जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे, फिर भी कीचड़ में अभ्यास कर विश्व चैंपियन बनीं। पढ़ें उनकी पूरी प्रेरणादायक संघर्षगाथा।
🏁 परिचय: कौन हैं हिमा दास?
हिमा दास, जिन्हें “ढिंग एक्सप्रेस” के नाम से जाना जाता है, भारत की एक प्रसिद्ध धाविका हैं। उन्होंने 2018 में विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। परंतु इस सफलता के पीछे था एक अत्यंत संघर्षशील और प्रेरक जीवन।
🌾 गाँव से विश्व तक का सफर
- हिमा का जन्म असम राज्य के नागांव जिले के छोटे से गाँव कंधुलीमारी में हुआ था।
- माता-पिता खेतों में मजदूरी करते थे और परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत कठिन थी।
- खेलने के लिए जूते तक नहीं थे। इसलिए हिमा ने चिखल और खेतों में ही अभ्यास करना शुरू किया।
⚽ खेलों की रुचि और सही मार्गदर्शन
बचपन से ही हिमा को फुटबॉल खेलने में आनंद आता था। विद्यालय के शारीरिक शिक्षक ने उनकी दौड़ने की क्षमता पहचानी और उन्हें एथलीट बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने जिला स्तर की दौड़ प्रतियोगिताओं में सफलता प्राप्त की और फिर राष्ट्रीय स्तर पर भी पहुँचीं।
🔥 कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प
हिमा को असम के एथलेटिक्स कैंप में प्रशिक्षण का अवसर मिला। यह प्रशिक्षण अत्यंत कठोर था – सुबह 5 बजे से लेकर देर शाम तक अभ्यास। हाथ-पैरों में सूजन, थकावट, पीड़ा – यह सब झेलकर भी उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी माँ ने उन्हें हिम्मत दी:
“बेटी, ये छोटे-छोटे संघर्ष तुझे बहुत दूर ले जाएंगे।”
🌟 सफलता के तीन अमूल्य सूत्र – हिमा दास की दृष्टि से
- दृढ़ निश्चय: जो आपको हर परिस्थिति में अपने लक्ष्य की ओर ले जाता है।
- निरंतर प्रयास: जो कभी व्यर्थ नहीं जाता और एक दिन अवश्य फल देता है।
- आत्मविश्वास: जो अंधकार में भी आशा की किरण बनकर मार्ग दिखाता है।
🎯 निष्कर्ष: सफलता साधनों से नहीं, संकल्प से मिलती है
हिमा दास की जीवनगाथा हमें सिखाती है कि यदि आपके पास दृढ़ निश्चय, मेहनत और आत्मविश्वास है, तो कोई भी अभाव या कठिनाई आपको रोक नहीं सकती।
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लेखक: संकलन – महेश घोरपड़े
टैग्स: हिमा दास, ढिंग एक्सप्रेस, प्रेरणादायक कहानी, महिला खिलाड़ी, संघर्ष से सफलता, भारतीय एथलीट