भविष्य की नींव: युवाओं की दिशा और माता-पिता की जिम्मेदारी
एक विद्यार्थी को अपना भविष्य संवारने के लिए करीब 25 से 30 साल का लंबा समय मिलता है। इस दौरान उसे शिक्षा, स्कॉलरशिप, आरक्षण, छात्रावास, शुल्क माफी जैसी ढेरों सुविधाएं मिलती हैं — विशेषकर यदि वह अनुसूचित जनजाति या पिछड़े वर्ग से आता है।
सरकार की ओर से आदिवासी विकास विभाग जैसे स्वतंत्र मंत्रालय बनाए गए हैं, ताकि समाज के वंचित वर्ग को मुख्यधारा में लाया जा सके। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि इतनी सुविधाओं के बावजूद भी कई युवा रास्ता क्यों भटक जाते हैं? समय बर्बाद क्यों करते हैं?
समस्या का असली कारण
इसका एक बड़ा कारण है — पालकों की लापरवाही। माता-पिता केवल बच्चों को जन्म देना ही अपना कर्तव्य न समझें, बल्कि उन्हें सही दिशा देना, जीवन के मूल्य सिखाना और उनके सपनों को आकार देने में मदद करना भी उतना ही जरूरी है।
जिस देश में 28 राज्य, 8 केंद्र शासित प्रदेश और 130 करोड़ की आबादी को एक संविधान के माध्यम से सुचारू रूप से नियंत्रित किया जा सकता है,
क्या हम अपने 2-3 बच्चों को सही मार्ग पर नहीं रख सकते?
निष्कर्ष
अगर हम अपना छोटा-सा परिवार नहीं संभाल पा रहे हैं, तो दोष सिर्फ बच्चों का नहीं, बल्कि हमारी भी जिम्मेदारी बनती है।
अब वक्त है जागने का। युवाओं को चाहिए कि वे इस अमूल्य समय को गंभीरता से लें और माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के जीवन की नींव को मजबूत करें। तभी एक समृद्ध, शिक्षित और जागरूक समाज का निर्माण संभव होगा।
लेखक: गोविंद पाडवी