डोगे दिवाली (देव आहट्या पूजन) | आदिवासी संस्कृति की पहचान

🌾 डोगे दिवाली (देव आहट्या पूजन) | आदिवासी संस्कृति की पहचान

🌾 डोगे दिवाली (देव आहट्या पूजन)

आदिवासी संस्कृति और प्रकृति के बीच का गहरा संबंध

आदिवासी समाज ने सदियों से अपनी संस्कृति, परंपराओं और जीवनशैली को जीवित रखा है। यह समाज प्रकृति-पूजक है — पेड़, पर्वत, जल और भूमि इनके देवता हैं। लेकिन आज यह परंपरा, अस्मिता और देव-पूजा की प्राचीन विधियाँ धीरे-धीरे लुप्त होने के खतरे में हैं।

नीलीचारी, वागदेव, गव्हाण पूजन (ओखड़ा), गांव दिवाली, कणी पूजन, ओली जोगन (होली) जैसे सभी पर्व प्रकृति के प्रतीक हैं। जिन वस्तुओं से जीवन संभव हुआ, उन्हें देवता मानकर उनकी पूजा की जाती है।

🌿 कोलपासा – सृष्टि का पहला जीव

आदिवासी मौखिक इतिहास के अनुसार, सृष्टि का पहला जीव कोलदाब में उत्पन्न हुआ — जिसका नाम कोलपासा था। उसके पिता वेडाल दोरिया और माता देवहेवाल (शैवाल) थीं।

कोलपासा के तीन परिवार माने जाते हैं — सृष्टि का स्वामी कोलपासा, आकाश (मेघराया) का स्वामी जुगोओजोडफा, और पाताल व जल का स्वामी हुर्रिंगपासा। प्राचीन काल में जब पृथ्वी पर प्रलय आया, तब कुछ मानव समूह पर्वतों पर बच गए — पावागढ़, देवहातरा, बाहहिराजा, अस्तंबा, रानी काजल और तिणसमाल। आज भी उन स्थानों पर हर वर्ष पारंपरिक पूजा की जाती है।

🔥 देव आहट्या पूजन की कथा

दाब मंडल के राजा कोलपासा के समय, गोऱ्या कोठार और देवगोंदारी परिवारों में आगी पांडर, कणी, और ओनहरी देव की परंपरा चली। गोऱ्या कोठार की एक बहन थी — गोरा बामणी

देव आहट्या एक बीमारी (मोड़ो दुख) से पीड़ित थे। बीमारी फैल न जाए, इसलिए वे अकेले पहाड़ पर चले गए और वहाँ जड़ी-बूटियों की सहायता से स्वयं को स्वस्थ किया।

उन्होंने अस्तंबा पर्वत पर अपना निवास बनाया और वहाँ स्त्रियों का प्रवेश निषिद्ध किया। हेलबदेवी और उमरावाणू को भी ऊपर जाने से रोका गया, क्योंकि देव आहट्या को अत्यंत पवित्र माना गया।

बाद में बाह गोऱ्याओं ने गोरा बामणी का विवाह देव आहट्या से करवाना चाहा, पर उसने इनकार किया। अंततः बाह गोऱ्याओं ने उसे दीपक भेंट किया और वचन दिया कि हर वर्ष दाब मंडल के सभी देवी-देवता तुझसे मिलने आएँगे — नाचते-गाते हुए।

🪔 देव आहट्या पूजन विधि

यह पूजा वर्ष में एक बार की जाती है। दाब मंडल के बेनिहेजा लोग तापी नदी के किनारे बेज गाँव में स्नान करते हैं और सवा महीने का पालनी (व्रत) रखते हैं। फिर डफ और पावी (बांसुरी) बजाते हुए नकट्यादेव के मार्ग से शिखर तक पहुँचते हैं और देव आहट्या की पूजा करते हैं।

देव आहट्या शाकाहारी (सोकुदेव) माने जाते हैं, इसलिए पूजा में रोषा घास, ज्वारी का कणीस, गव्हाण पूजन के लिए दोर आदि वस्तुएँ लाई जाती हैं। यह पूजा परिवार के स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और धन-धान्य की वृद्धि के लिए की जाती है।

🌱 आदिवासी संस्कृति का महत्व

आदिवासी समाज में श्रम, सामूहिकता और सहयोग की भावना सर्वोपरि है। इन्हीं मूल्यों को संरक्षित रखने के लिए, नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति, देवी-देवताओं, भाषा, कला, पर्व और पर्यावरण संरक्षण की परंपरा का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है।


✍️ संकलन: श्री करमसिंह पाडवी | निवासी: काठी | तहसील: अक्कलकुवा
📞 संपर्क: 7744094923

🌾 यह लेख आदिवासी परंपराओं, इतिहास और प्रकृति पूजन की विरासत को सुरक्षित रखने के लिए समर्पित है। www.adivasisongs.com