Shaadi Mein Swagat aur Satkar Ki Parampara — Ek Sochne Layak Baat! विवाह में स्वागत सत्कार की परंपरा पर विचार

शादी में स्वागत सत्कार की परंपरा पर पुनर्विचार



विवाह का निमंत्रण देकर अपमान करने की परंपरा का नाम है — शादी में स्वागत और सत्कार समारोह…!

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क्या यह अपमान नहीं?

शादी समारोह में कुछ गिने-चुने अमीर, पैसेवाले या बड़े लोगों का मंच से नाम लेकर स्वागत करना — क्या यह बाकी आए हुए रिश्तेदारों और मित्रों का परोक्ष अपमान नहीं है?

समय निकालकर जो लोग आते हैं, क्या वे कम महत्वपूर्ण हैं?

समाज की खोखली परंपराएं

ऐसी बेकार की परंपराएं अब बंद होनी चाहिए। सिर्फ प्रतिष्ठित व्यक्तियों का नाम लेकर स्वागत करना गलत है। सभी मेहमान समान आदर के हकदार होते हैं।

सभी का सामूहिक स्वागत करें

जो लोग समय से आते हैं और पूरी शादी में शामिल रहते हैं, वे ही असली मान्यवर हैं।

प्रारंभ में सभी मेहमानों का एकसाथ स्वागत करें और विवाह विधियों को समय पर सम्पन्न करें।

गरीब रिश्तेदारों की अनदेखी?

आपके अपने रिश्तेदार जो गरीब हैं लेकिन पूरी निष्ठा से साथ रहते हैं, उन्हें महत्व मिलना चाहिए।

नेताओं का दिखावा

बड़े लोग अक्सर सिर्फ फोटो खिंचवाने आते हैं और बिना खाना खाए चले जाते हैं। क्या यह समारोह और भोजन दोनों का अपमान नहीं?

वास्तविक महत्त्व किन्हें दें?

जो लोग शुरुआत से अंत तक साथ रहें, वे ही असली मेहमान हैं — उन्हीं को महत्व दें।

एक अंतिम सुझाव

यदि जिनका सत्कार नहीं हुआ, वे बाहर निकलकर नाराज़गी जताएं — तो यह दिखावटी परंपरा जल्द ही समाप्त हो सकती है।

सच की चादर ओढ़ नहीं सकते, झूठी शान में खो गए हैं,
गरीब जो दिल से साथ निभाए, उन्हें तो हम पहचान भी नहीं पाए।

फूल हारों से क्या होता है, जो साथ खड़ा है वही अपना है,
नेताओं की तस्वीरें क्या देंगी, जो नाता दिल का सच्चा सपना है।

आदर वहीं सच्चा होता है, जहाँ भाव में भेद नहीं होता,
जो भी आए प्रेम से शादी में, वह भी कोई “मान्यवर” से कम नहीं होता।

सादर प्रणाम।